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पर्यावरण की प्रहरी और चिपको आंदोलन की प्रणेता-गौरा देवी

गौरादेवी की जन्मशताब्दी पर विशेष –


 
देहरादून। उत्तराखंड की धरती ने हमेशा वीरता, त्याग और प्रकृति प्रेम उत्तराखंड की विशेष पहचान रही है। उत्तराखंड की धरती ने वीरता की कई मिसालें दी हैं।
इन्हीं अमर नायिकाओं में से एक नाम है गौरा देवी।द

गौरा देवी उत्तराखंड की एक ऐसी वीर नारी थीं, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए असाधारण साहस दिलखाया और चिपको आंदोलन की एक मिसाल बनीं। हाल ही में उनकी जन्मशताब्दी पर डाक विभाग ने विशेषीकृत माई स्टाम्प और विशेष आवरण जारी करके उन्हें श्रद्धांजलि दी है।

टिहरी जनपद के रैणी गांव की यह साधारण सी महिला पर्यावरण संरक्षण की वैश्विक प्रतीक बन गईं।

जीवन परिचय-

गौरा देवी का जन्म वर्ष 1925 में उत्तराखंड के लाता गांव (जोशीमठ क्षेत्र) में हुआ था। अल्प आयु में ही उनका विवाह रैणी गांव के बहादुर सिंह राणा से हुआ। मात्र 22 वर्ष की आयु में वे विधवा हो गईं, परंतु उन्होंने जीवन की कठिनाइयों को अपनी शक्ति बना लिया। वे अपने गांव की महिला मंगल दल की अध्यक्ष थीं और स्थानीय समाज के उत्थान के लिए निरंतर सक्रिय रहीं।

चिपको आंदोलन और गौरा देवी का साहस—

साल 1974 में जब विदेशी ठेकेदारों को रैणी गांव के निकट जंगलों में पेड़ काटने का ठेका मिला, तो गौरा देवी ने इसका डटकर विरोध किया।
एक दिन जब गांव के सभी पुरुष गांव से बाहर थे, लकड़ी काटने वाले मजदूर गांव के जंगल पहुंचे। तब गौरा देवी ने गांव की महिलाओं को संगठित किया और पेड़ काटने का गांधीवादी तरीके से विरोध करते हुए सभी महिलाएं  पेड़ों से लिपट गई । उन्होंने कहा
>जंगल हमारे माता-पिता का घर है। गौरा देवी के इस सहास को देखते हुए ठेकेदार मजदूरों संग पीछे हटने को मजबूर हो गया।
इस तरह चिपको आंदोलन को एक नई दिशा व पहचान मिली।
यह था “चिपको आंदोलन” का वह ऐतिहासिक क्षण, जिसने पर्यावरण संरक्षण की एक वैश्विक चेतना को जन्म दिया। गौरा देवी और उनकी साथियों ने न केवल पेड़ों को बचाया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि प्रकृति और मानव का रिश्ता मातृत्व जैसा है।

गौरा देवी के नेतृत्व में शुरू हुआ यह आंदोलन केवल जंगल बचाने का अभियान नहीं था, बल्कि यह महिलाओं की पर्यावरणीय चेतना और अधिकारों की आवाज़ भी था।
उनके इस कार्य ने सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट जैसे पर्यावरणविदों के प्रयासों को भी नई दिशा दी।
आज यह आंदोलन विश्वभर में “ग्रासरूट इकोलॉजी मूवमेंट” के रूप में पढ़ाया जाता है।

डाक टिकट के रूप में सम्मान-

उनकी जन्मशताब्दी (1925–2025) के अवसर पर भारत सरकार के डाक विभाग द्वारा जारी डाक टिकट गौरा देवी के अमर योगदान को नमन है। यह टिकट न केवल एक स्मृति है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संदेश भी देता है कि

> “प्रकृति की रक्षा ही मानवता की रक्षा है।”

प्रेरणा –

गौरा देवी ने  यह साबित कर दिया कि शिक्षा से वंचित एक साधारण महिला जो बिना किसी पद, पुरस्कार या शक्ति के, केवल अपने साहस और विश्वास के बल पर पर्यावरण जैसे वैश्विक मुद्दे पर ऐतिहासिक परिवर्तन
लाते हुए  पर्यावरण की सबसे बड़ी रक्षक बन सकती है।
वह आज भी भारतीय नारी शक्ति और पर्यावरण चेतना की एक अमूल्य धरोहर है।

> “पेड़ बचाओ, जीवन बचाओ।”

गौरा देवी के नाम से उत्तराखंड सरकार और विभिन्न संगठन की ओर से  प्रमुख पुरस्कार व योजनाएँ भी संचालित हो रही हैं:

1. गौरा देवी पर्यावरण पुरस्कार — यह अभियान सामाजिक कार्यकर्ताओं, पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सक्रिय लोगों को दिया जाता है।

2. उत्तराखंड रत्न सम्मान — गौरा देवी को 2016 में मरणोपरांत यह सम्मान दिया गया था।

3. गौरा देवी कन्या धन योजना — यह एक सरकारी वित्त-सहायता योजना है, जिसे गौरा देवी के नाम पर बेटियों की शिक्षा एवं सशक्तिकरण के लिए शुरू किया गया है।

प्रस्तुती – जितेंद्र नेगी
वरिष्ठ पत्रकार

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