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राजनीति अस्थिरता उत्तराखंड की नियति में…

आंतरिक कलह, गुटबाजी व राजनीतिक महत्वाकांक्षा बड़ा कारण

देहरादून(ईसीएन)।
राज्य निर्माण के गठन से ही उत्तराखंड की राजनीति में अस्थिरता का जो दौर शुरू हुआ आज रजत जयंती वर्ष में भी थमने का नाम नहीं ले रहा है।
राज्य स्थापना के समय से अबतक शायद कोई मुख्यमंत्री ( स्व. नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर )अपने पांच साल का कार्यकाल पूर्ण करने में सफल रहा हो। तिवारी ने भले पांच साल सरकार चलाई हो लेकिन इन पांच सालों में भी राजनीतिक अस्थिरता हमेशा बनी रही। अपने विरोधियों से आजिज आकर कई मर्तबा सार्वजनिक मंचों से स्वयं तिवारी को यह कहते देखा गया कि वह जल्द ही प्रदेश की राजनीति को बाय -बाय करने जा रहे हैं।

मुख्यमंत्रियों को अपनी पार्टी के भीतर गुटबाजी व विरोध का सामना करना पड़ा है। जिसके चलते बार बार सरकारों को अस्थिर करने प्रयास होते रहे हैं।
वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इस तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। अपने दूसरे कार्यकाल के तीन वर्ष पूर्ण करने के बावजूद पिछले हर छह माह में उन्हें हटाए जाने की चर्चाएं होती रही है।

9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड देश के 27वें राज्य के रूप में स्थापित हुआ।अपने गठन के बाद से ही राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी है। राज्य में सत्ता परिवर्तन और मुख्यमंत्री बदलने की प्रवृत्ति लगातार बनी रही है। नित्यानंद स्वामी से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तक, उत्तराखंड में शायद ही कोई सरकार बिना आंतरिक कलह और अस्थिरता के लंबा कार्यकाल पूरा कर पाई हो।
उत्तराखंड में सरकारों की अस्थिरता का मुख्य कारण आंतरिक कलह, गुटबाजी और राजनीतिक महत्वाकांक्षा रही है। जब तक राज्य की राजनीति में स्थिरता और नेतृत्व को लेकर स्पष्टता नहीं आती, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। निश्चित रूप से राजनीतिक अस्थिरता विकास कार्यों को भी प्रभावित करती है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड में काफी विकास हुआ है लेकिन राज्य निर्माण की जिस अवधारणा को लेकर राज्य आंदोलनकारियों ने संघर्ष किया था वह आज भी ठगा महसूस कर रहें हैं।
इसके पीछे एक बड़ा कारण राजनीतिक अस्थिरता को भी माना जा सकता है।

इसके प्रमुख कारणों को अगर हम देखें तो उनमें राजनीतिक दलों का केंद्रीय नेतृत्व भी बड़ा कारण रहा है।
उत्तराखंड में केंद्र की भूमिका भी सत्ता परिवर्तन में अहम रही है। सत्तारूढ़ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा कई बार मुख्यमंत्री बदले गए, जिससे अस्थिरता बढ़ी।


गुटबाजी और आंतरिक कलह–
उत्तराखंड की राजनीति में गुटबाजी की समस्या बहुत गंभीर रही है। किसी भी सरकार के गठन के बाद भीतर ही भीतर असंतोष पनपने लगता है।
.–दलबदल और विधायकों की असहमति–
विधायकों का दल बदलना और अपने ही मुख्यमंत्री के खिलाफ असहमति जताना राज्य में सरकारों के अस्थिर होने का प्रमुख कारण रहा है।

क्षेत्रीय असंतुलन
सत्ता संतुलन को लेकर गढ़वाल और कुमाऊं दोनों क्षेत्रों के बीच राजनीतिक तनाव हमेशा देखा गया है।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल और राजनीतिक अस्थिरता–

  1. नित्यानंद स्वामी (2000-2001)
    उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को पहले दिन से ही अपनी ही पार्टी के विधायकों के विरोध का सामना करना पड़ा जिसके चलते उन्हें एक साल के भीतर ही हटना पड़ा।
  2. भगत सिंह कोश्यारी (2001-2002)
    नित्यानंद स्वामी के स्थान पर भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन अगले ही वर्ष 2002 में जब पहली निर्वाचित सरकार के लिए चुनाव हुए तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हार का सामना करना पड़ा।
  3. नारायण दत्त तिवारी (2002-2007)
    प्रदेश में पहली निर्वाचित सरकार कांग्रेस की बनी लेकिन मुख्यमंत्री को लेकर हुए विवाद के चलते एन.डी. तिवारी को सत्ता सौंपी गई।उनका कार्यकाल अपेक्षाकृत कुछ हद तक स्थिर रहा, लेकिन उनके बाद कांग्रेस में नेतृत्व संकट गहराया हुआ है।
  4. भुवन चंद्र खंडूरी और रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ (2007-2012)
    भाजपा ने 2007 में सरकार बनाई, लेकिन नेतृत्व परिवर्तन के चलते अस्थिरता बनी रही। इस दौरान पहले खंडूड़ी उसके बाद निशंक और फिर खंडूड़ी को सत्ता सौंपी गई।
  5. विजय बहुगुणा और हरीश रावत (2012-2017)
    कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन 2014 में उन्हें हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। हरीश को भी उनके विरोधी ने टिकने नहीं दिया। पहली बार प्रदेश में किसी सरकार के खिलाफ उसके विधायकों ने बगावत कर दी। हरीश रावत को कुछ समय के लिए सरकार से बेदखल होना पड़ा।
  6. त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत और पुष्कर सिंह धामी (2017-2021)
    भाजपा की सरकार में भी अस्थिरता बनी रही। पहली बार प्रदेश ने एक कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री देखें।
    वर्ष 2017 में मिली जीत के बाद जहां कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को मिली चार साल बाद उन्हें हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन वे भी ज्यादा समय तक टिक नहीं सके। ऐन चुनाव से पहले तीरथ को हटा कर पुष्कर सिंह धामी को कमान सौंपी गई।
  7. पुष्कर सिंह धामी (2021-वर्तमान)
    वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी 2022 में पार्टी को जिताने में तो सफल रहे लेकिन जनता ने उन्हें हरा दिया। हालांकि केंद्रीय नेतृत्व ने उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बना दिया। बाद में वह चम्पावत विधानसभा क्षेत्र से रिकॉर्ड मतों से उपचुनाव जीते।वर्तमान में वह अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल के तीन वर्ष पूर्ण कर चुके हैं लेकिन हर छह -आठ माह में उन्हें भी हटाने की चर्चा होती रहती है। हाल के दिनों में मंत्रीमंडल से एक कैबिनेट मंत्री प्रेम अग्रवाल की छुट्टी के बाद मुख्यमंत्री के अचानक दिल्ली दौरों से इन चर्चाओं को बल मिल गया ।
    मंत्रिमंडल विस्तार में देरी को भी उनके विरोधी हटाए जाने की चर्चा से जोड़ रहे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जिस कॉन्फिडेंस से कार्य कर रहे हैं उससे उनके विरोधी भी सदमे में हैं। लेकिन अब धामी ने लंबे अरसे से अटकी दायित्वधारियों की नियुक्ति कर अपने विरोधियों को जबाब देते हुए फिलवक्त किसी भी तरह की चर्चाओ पर विराम लगा दिया है।

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